ठ, यानी ठठेरा

ठ, यानी ठठेरा,
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देेवेन्द्र ताम्रकार-
ठ यानी ठठेरा शब्द वैसे तो स्कूल की प्राथमिकी की हिन्दी की पुस्तक में एक चर्चित शब्द है। 
इस शब्द के साथ ही चित्र भी दर्शाया गया है कि एक व्यक्ति जिससे ठठेरा का नाम दिया गया है और वह बर्तन बनाने का काम कर रहा है। उसी को ठ यानी ठठेरा कहा गया है। 


हमारे देश के संविधान व्यवस्था के अनुसार लोगों के कार्य व्यवस्था अनुसार विभिन्न जातियों, वर्णों से मिलकर हम सब भारतीय हैं। पर मूल कार्यों के आधार पर देश एवं प्रदेशों में जातिगत व्यवस्था अभी से नहीं पीढिय़ों से चली आ रही है, जो कि शासन के राजपत्र में भी लागू है। 


हमने बात शुरू की है यहां ठ यानी ठठेरा से, ठठेरा के कार्य है तांबा,पीतल,कांसा के बर्तन बनाना, जो पीढ़ी दर पीढ़ी से बनाते आ रहे हैं, और आज भी कई स्थानों पर बना रहे हैं। व्यवस्था अनुसार ठठेरा के कई उपनाम भी हैं, जैसे तमेर, कसेरा, कसारा, तम्वटकर, ओटारी, झारिया, ताम्रकार। में स्वयं इस जाति से हूं और मेरी जाति के रूप में ताम्रकार लिखता हूं। तथा यह जाति मध्यप्रदेश शासन के राजपत्र में 36 वें क्रम पर दर्ज है। 


शासन के राजपत्र के अनुसार ठठेरा जाति पिछड़ा वर्ग में दर्ज है। इसी प्रकार मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार, लोहे का काम करने वाले लुहार, लकड़ी का काम करने वाले बाढ़ई, विश्वकर्मा, सोना-चांदी का काम करने वाले सोनी,स्वर्णकार आदि जातियों का काम के निर्धारण अनुसार राजपत्र में उनके पिछड़ा वर्ग में दर्ज हैं। इसी प्रकार अन्य कार्य करने वालों की जातियों का अनु.जाति, अनु.जनजाति होने का उल्लेख भी राजपत्र में है। 


हमने बात यहां ठठेरा से शुरू कि थी, क्योंकि जातिगत व्यवस्था अनुसार में स्वयं इस जाति से हूं। तो बताना चाहूंगा कि अगर में ठठेरा, ताम्रकार हूं तो आवश्यक रूप से तांबा, पीतल, कांसा के बर्तन बनाने का पूरा नहीं तो थोड़ा बहुत ज्ञान तो अवश्य रखता होऊंगा तभी में ठठेरा हूं?
हां जी हां मेरी पिता के निधन के पूर्व उनके साथ मेरी 12 वर्ष के बाल्यकाल में मैने ठठेरागिरी के कार्य को खूब परखा है। बर्तन बनाने के साथ किसी बर्तन के फूट जाने पर उसमें टांका लगाने का कार्य ठठेरा लोग करते हैं, आज भी ठठेरा के बर्तन बनाने के हथोड़ा पकडऩे की कला मुझ में विराजमान है, पत्रकारिता के 28 वर्ष के सफर के बीच ठठेरा के हथोड़ा की जगह भले ही मैने कलम पकड़ ली हो, पर वह हथोड़ा आज भी मेरे जहन से नहीं उतरा है।


मेरे कहने का तात्पर्य है कि हमारे देश में लोगों के कर्मों, काम करने के हिसाब से संविधान अनुसार जातिगत व्यवस्था लागू की गई है। जो जिस जाति वर्ग से है उससे उसी लिहाज से शासन द्वारा आरक्षण सुविधायें प्रदान करने की व्यवस्था भी लागू की गई हैं।  


जैसे ठठेरा बर्तन बनाने का काम जानते हैं, सोनी सोने-चांदी का काम जानते हैं, कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाने का काम जानते हैं। उसी प्रकार अनु.जाति में एक जाति आती है, बाजीगर (मदारी) जो रस्सी पर चढक़र कत्र्तव्य दिखाने का कार्य करते हैं। अक्सर हमने इस तरह के कत्र्तव्य सडक़ों पर देखे होंगे। जो बाजीगर लोग दिखाते हैं। अगर कोई व्यक्ति इस जाति से है तो वह तत्काल हामी भरकर रस्सी पर चढक़र इस तरह का कत्र्तव्य पूरा नहीं तो थोड़ा बहुत तो दिखा ही सकता है, और अपने पूर्वजों के प्रमाण भी प्रस्तुत कर सकते है कि वो रस्सी पर चढक़र किस-किस तरह के कत्र्तव्य दिखाते थे..............? 
ये तो कर्मों की बात है, कर्म किए जा, फल की इच्छा मत कर ये इंसान.......!!